इस महानगर में आज की शाम आने को है लेकिन सड़कें इतनी वीरान क्यों हैं? मैं आहिस्ता चलना चाहता हूँ.
4.
दीवारों पे नवीस्ता है अहिस्ता चलना दरदका ये रिश्ता है आहिस्ता चलाना सजाया अभी उसको ताजा गुलों से दिलोंका गुलिस्तां है आहिस्ता चलना
5.
इस दुःख के समय प्रक्रति से यही विनती है कि अब और कोई नया दुःख नयी विपत्ति इस धरती के हिस्से पर ना आये इस उजड़ी बस्ती के बाशिंदों को फिर से बसने का, संवरने का संभलने का अवसर मिले, नियति तुम अपनी चाल से जरुर चलो लेकिन ज़रा देख लेना कि ये उजड़ी बस्ती अभी दर्द दुःख वेदना और पीड़ा से नम है अभी आखों में आसूं हैं जो दिल कि मिट्टी को नम बनाए हुए है तुम ज़रा आहिस्ता आहिस्ता चलना कि दिल कि मिट्टी है अभी तक नम ज़रा आहिस्ता चल